कालिंजर किला, बुंदेलखंड

कालिंजर किला, बुंदेलखंड

कालिंजर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में बांदा ज़िले में स्थित पौराणिक संदर्भ वाला एक ऐतिहासिक दुर्ग है। भारतीय इतिहास में सामरिक दृष्टि से यह क़िला काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन नगरी खजुराहो के निकट ही स्थित है।

कालिंजर दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय क़िलों में एक माना जाता है।

एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस क़िले में अनेक स्मारकों और मूर्तियों का खजाना है। इन चीज़ों से इतिहास के विभिन्न पहलुओं का पता चलता है। चंदेलों द्वारा बनवाया गया यह क़िला चंदेल वंश के शासन काल की भव्य वास्तुकला का उम्दा उदाहरण है। इस क़िले के अंदर कई भवन और मंदिर हैं। इस विशाल क़िले में भव्य महल और छतरियाँ हैं, जिन पर बारीक डिज़ाइन और नक्काशी की गई है। क़िला हिन्दू भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। क़िले में नीलकंठ महादेव का एक अनोखा मंदिर भी है।

इतिहास

इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह बांदा जनपद का कालिंजर क़िला हर युग में विद्यमान रहा है। इस क़िले के नाम अवश्य बदलते गये हैं। इसने सतयुग में कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से ख्याति पायी है। कालिंजर का अपराजेय क़िला प्राचीन काल में जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। जब चंदेल शासक आये तो इस पर महमूद ग़ज़नवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने आक्रमण कर इसे जीतना चाहा, पर कामयाब नहीं हो पाये। अंत में अकबर ने 1569 ई. में यह क़िला जीतकर बीरबल को उपहार स्वरूप दे दिया। बीरबल के बाद यह क़िला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। इनके बाद क़िले पर पन्ना के हरदेव शाह का कब्जा हो गया। 1812 ई. में यह क़िला अंग्रेज़ों के अधीन हो गया।

कालिंजर के मुख्य आकर्षणों में नीलकंठ मंदिर है। इसे चंदेल शासक परमादित्य देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाली विशालकाय प्रतिमा के अलावा रखा शिवलिंग नीले पत्थर का है। मंदिर के रास्ते पर भगवान शिव, काल भैरव, गणेश और हनुमान की प्रतिमाएं पत्थरों पर उकेरी गयीं हैं। इतिहासवेत्ता राधाकृष्ण बुंदेली व बीडी गुप्त बताते हैं कि यहां शिव ने समुद्र मंथन के बाद निकले विष का पान किया था। शिवलिंग की खासियत यह है कि उससे पानी रिसता रहता है। इसके अलावा सीता सेज, पाताल गंगा, पांडव कुंड, बुढ्डा-बुढ्डी ताल, भगवान सेज, भैरव कुंड, मृगधार, कोटितीर्थ, चौबे महल, जुझौतिया बस्ती, शाही मस्जिद, मूर्ति संग्रहालय, वाऊचोप मकबरा, रामकटोरा ताल, भरचाचर, मजार ताल, राठौर महल, रनिवास, ठा. मतोला सिंह संग्रहालय, बेलाताल, सगरा बांध, शेरशाह सूरी का मक़बरा व हुमायूं की छावनी आदि हैं।


नीलकण्ठ मंदिर, कालिंजर

नीलकंठ मंदिर परिसर, कालिंजर

स्थापत्य

कालिंजर दुर्ग विंध्याचल की पहाड़ी पर 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। दुर्ग की कुल ऊंचाई 108 फ़ीट है। इसकी दीवारें चौड़ी और ऊंची हैं। इनकी तुलना चीन की दीवार से की जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। कालिंजर दुर्ग को मध्यकालीन भारत का सर्वोत्तम दुर्ग माना जाता था। इस दुर्ग में स्थापत्य की कई शैलियाँ दिखाई देती हैं, जैसे गुप्त शैली, प्रतिहार शैली, पंचायतन नागर शैली आदि। प्रतीत होता है कि इसकी संरचना वास्तुकार ने अग्निपुराण, बृहदसंहिता तथा अन्य वास्तु ग्रन्थों के अनुसार की है। क़िले के बीचों-बीच अजय पलका नामक एक झील है, जिसके आसपास कई प्राचीन काल के निर्मित मंदिर हैं। यहाँ ऐसे तीन मंदिर हैं, जिन्हें अंकगणितीय विधि से बनाया गया है। दुर्ग में प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं और ये सभी दरवाजे आपस में एक-दूसरे से भिन्न शैलियों से अलंकृत हैं।

बुंदेलखंड के ऐतिहासिक किले कालिंजर को कालजयी कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। प्रागैतिहासिक काल के पेबुल (पत्थर) यहां मिल चुके हैं। इस किले का वेदों में भी जिक्र किया गया है। कई पौराणिक घटनाएं इस दुर्ग से जुड़ी हुई हैं। इस किले में नीलकंठ मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि महादेव ने यहीं पर विषपान कर काल की गति को मात दी थी।

मंदिर के ठीक पीछे की तरफ पहाड़ काटकर पानी का कुंड बनाया गया है। इसमें बने मोटे-मोटे स्तंभों और दीवारों पर प्रतिलिपि लिखी हुई है। इस मंदिर के ऊपर पहाड़ है, जहां से पानी रिसता रहता है। बुंदेलखंड सूखे के कारण जाना जाता है, लेकिन कितना भी सूखा पड़ जाए, इस पहाड़ से पानी रिसना बंद नहीं होता है। कहा जाता है कि सैकड़ों साल से पहाड़ से ऐसे पानी निकल रहा है, ये सभी इतिहासकारों के लिए अबूझ पहेली की तरह है।

शिव ने यहां काल की गति को दी थी मात…

कालिंजर का पौराणिक महत्व महादेव के विषपान से है। समुद्र मंथन में मिले कालकूट विष को पीने के बाद शिव ने इसी दुर्ग में आराम करके काल की गति को मात दी थी। महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने यहां कोटतीर्थ में स्नान किया था। वेदों में इसे सूर्य का निवास माना गया है। पद्म पुराण में इसकी गिनती सात पवित्र स्थलों में की गई है। मत्स्य पुराण में इसे उज्जैन और अमरकटंक के साथ अविमुक्त क्षेत्र कहा गया है। जैन ग्रंथों और बौद्ध जातकों में इसे कालगिरी कहा जाता था। वेदों में उल्लेख के आधार पर ही इसे दुनिया का सबसे प्राचीन किला माना गया है।

नीलकंठ मंदिर को कालिंजर के प्रांगण में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण और पूजनीय माना गया है। इस मंदिर का जिक्र पुराणों में है। मंदिर में शिवलिंग स्थापित है, जिसे बेहद प्राचीनतम माना गया है। नीलकंठ मंदिर से काल भैरव की प्रतिमा के बगल में चट्टान काटकर जलाशय बनाया गया है। इसे ‌’स्वर्गारोहण जलाशय’ कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी जलाशय में स्नान करने से कीर्तिवर्मन का कुष्ठ रोग खत्म हुआ था। ये जलाशय पहाड़ से पूरी तरह से ढका हुआ है।

सीता का विश्राम स्थल

कालिंजर फोर्ट के अंदर ही पाषाण द्वारा निर्मित एक शैय्या और तकिया है। इसे सीता सेज कहते हैं। कथाओं के अनुसार, इसे सीता का विश्राम स्थल कहा जाता है। यहां पर तीर्थ यात्रियों के आलेख हैं। एक जलकुंड है, जो सीताकुंड कहलाता है। इस दुर्ग में दो बड़े जलकुंड बने हुए हैं। इसका जल चर्म रोगों को दूर करने के लिए लाभकारी माना जाता है। यहां नहाने से कुष्टरोग दूर हो जाता है।

बुंदेलखंड के बांदा जिले से करीब 75 किमी दूर कालिंजर में बना ये फोर्ट कई किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस फोर्ट पर लंबे समय तक चंदेल शासकों का राज रहा। इसका निर्माण कब हुआ, इसके प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलते हैं। कालिंजर को सतयुग का हिस्सा बताया जाता है। इसे अलग-अलग काल में कई नामों से पुकारा जाता रहा है। सतयुग में इसे कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़ और द्वापर युग में सिंहलगढ़ के नाम से जाना जाता था। वहीं, कलयुग में इसे कालिंजर के नाम से पुकारा जाता है।

चंदेल राजाओं ने यहां 600 साल तक किया शासन

इसके साथ ही अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंग कालिंजर फोर्ट से जुड़े हैं। 9वीं शताब्दी में ये किला चंदेल साम्राज्य के अधीन हो गया। यहीं से कालिंजर का ऐतिहासिक काल शुरू हुआ। 15वीं शताब्दी तक इस किले पर चंदेल राजाओं का शासन रहा। माना जाता है कि कालिंजर में चंदेल राजाओं ने सबसे ज्यादा 600 साल तक शासन किया। विंध्याचल की पहाड़ी पर 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये किला इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह है।

800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है किला

मुगल काल में ये किला बीरबल का जागीर था। इतिहासकार कहते हैं कि इसके बाद कालिंजर किला राजा छत्रसाल के अधीन हो गया और फिर इस पर पन्ना के राजा ने शासन किया। 1800 ई. के बाद ये किला अंग्रेजों ने अपने नियंत्रण में ले लिया। 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस फोर्ट को घूमने में करीब दो दिन लग जाता है। बाहर से देखने पर ये किला एक पहाड़ लगता है, लेकिन ऊपर जाने पर इसकी विशालता हैरान कर देती है।

एक समय था, जब कालिंजर चारों ओर से ऊंची दीवार से घिरा था और इसमें चार प्रवेश द्वार थे। इस वक्त कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवा द्वार नाम के सिर्फ तीन गेट ही बचे हैं। किले में आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा नाम के सात द्वारों से अंदर जा सकते हैं। किले के अंदर राजा और रानी के नाम से शानदार महल बने हुए हैं।

कालिंजर विकास संस्थान के संयोजक बीडी गुप्ता ने बताया कि कुछ समय पहले यहां कई प्राचीन शिलालेख मिले थे। इन शिलालेखों के बारे में उन्होंने बताया कि मई, 1545 को शेर शाह की मृत्यु के बाद उनके बेटे इस्लाम शाह की दिल्ली के सिंहासन पर विधिवत ताजपोशी हुई थी।

नीलकण्ठ मंदिर परिसर, कालिंजर

स्वर्गारोहण कुंड -
प्राकृतिक चट्टान से कटा जलाशय