Neelkanth Temple
millennia old Lord Shiva temple at Kalinjar
Neelkanth (Nilkanth) Shiva Temple at Kalinjar Fort
Situated at the western side of the Kalinjar fort plateau, Neelakantha Temple is a famous millennia old Lord Shiva temple housing ‘ekmukhi Shivalinga’ and various other ancient rock carvings in its campus.
This ancient temple of Lord Shiva built over 1000 years ago and is one the ancient temples in India. You need to climb down around steep 120 steps from the fort walls to reach the temple area. On the way to temple stairways, many small caves and rocks carvings can be seen.
A Multi-pillared Mandapa is situated on the entrance of this Shiva Temple. Mandapa pavilion is a unique work of Chandela architecture who ruled this fort around 9th -12th CE.
Neelkantha Temple main attraction is a large bluestone Shivalingam with silver eyes, which has been a primary object of worship for over a millennium. As per the mythology Lord Shiva came to Kalinjar to quench his thirst after consuming poison after the Samudra Manthan. Even today throat of the shiva lingam is always moist with water source inside the temple.
On top of the temple, there is a natural rock cut reservoir of water called Swargahan Kund, numerous other rock carvings are visible all around the temple premises.
A colossal Mahasadashiva rock cut carving is situated on the left side of the temple. This 24 feet tall impressive figure depicts lord shiva with 18 arms and a skull in his hand. Status of Kali is also present within the same carving.
नीलकंठ महादेव मंदिर, कालिंजर
क़िले के पश्चिमी भाग में कालिंजर के अधिष्ठाता देवता नीलकंठ महादेव का एक प्राचीन मंदिर भी स्थापित है। इस मंदिर को जाने के लिए दो द्वारों से होकर जाते हैं। रास्ते में अनेक गुफ़ाएँ तथा चट्टानों को काट कर बनाई शिल्पाकृतियाँ बनायी गई हैं। वास्तुशिल्प की दृष्टि से यह मंडप चंदेल शासकों की अनोखी कृति है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर परिमाद्र देव नामक चंदेल शासक रचित शिवस्तुति है व अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। मन्दिर के ऊपर ही जल का एक प्राकृतिक स्रोत है, जो कभी सूखता नहीं है। इस स्रोत से शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है। बुन्देलखण्ड का यह क्षेत्र अपने सूखे के कारण भी जाना जाता है, किन्तु कितना भी सूखा पड़े, यह स्रोत कभी नहीं सूखता है। चन्देल शासकों के समय से ही यहाँ की पूजा-अर्चना में लीन चन्देल राजपूत जो यहाँ पण्डित का कार्य भी करते हैं, वे बताते हैं कि शिवलिंग पर उकेरे गये भगवान शिव की मूर्ति के कंठ का क्षेत्र स्पर्श करने पर सदा ही मुलायम प्रतीत होता है। यह भागवत पुराण के सागर मंथन के फलस्वरूप निकले हलाहल विष को पीकर, अपने कंठ में रोके रखने वाली कथा के समर्थन में साक्ष्य ही है।
ऊपरी भाग स्थित जलस्रोत हेतु चट्टानों को काटकर दो कुंड बनाए गए हैं, जिन्हें स्वर्गारोहण कुंड कहा जाता है। इसी के नीचे के भाग में चट्टानों को तराशकर बनायी गई कालभैरव की एक प्रतिमा भी है। इनके अलावा परिसर में सैकड़ों मूर्तियाँ चट्टानों पर उत्कीर्ण की गई हैं। शिवलिंग के समीप ही भगवती पार्वती एवं भैरव की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। प्रवेश द्वार के दोनों ही ओर ढेरों देवी-देवताओं की मूर्तियां दीवारों पर तराशी गयी हैं। कई टूटे स्तंभों के परस्पर आयताकार स्थित स्तंभों के अवशेष भी यहाँ देखने को मिलते हैं। इतिहासकारों के अनुसार इन पर छः मंजिला मन्दिर का निर्माण किया गया था। इसके अलावा भी यहाँ ढेरों पाषाण शिल्प के नमूने हैं, जो कालक्षय के कारण जीर्णावस्था में हैं।
नीलकंठ मंदिर को कालिंजर के प्रांगण में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण और पूजनीय माना गया है। इसके मंदिर के मंडप का निर्माण चंदेलों ने कराया था। इस मंदिर का जिक्र पुराणों में है। मंदिर में शिवलिंग स्थापित है, जिसे 1 हज़ार साल के आस पास प्राचीन माना गया है। नीलकंठ मंदिर से काल भैरव की प्रतिमा के बगल में चट्टान काटकर जलाशय बनाया गया है। इसे ’स्वर्गारोहण जलाशय’ कहा जाता है। ये जलाशय पहाड़ से पूरी तरह से ढका हुआ है।